Official Blog of Ambrish Shrivastava: क्या आरक्छन भेदभाव मिटा सकता है

Monday, February 6, 2017

क्या आरक्छन भेदभाव मिटा सकता है


क्या जाती और धर्म के आधार पर दिया गया आरक्छन भेदभाव मिटा सकता है समाज से?, नही मिटा सकता है, क्योंकि मनुष्य किसी भी जाती या धर्म का हो उसके लिए स्वयम की उन्नति ही सर्वोपरि है, चलो मेने एक बार को मान लिया की ऊँची जाती के बच्चे सभी तरह का भेदभाव भुला कर दलितों और मुस्लिमो के बच्चो के साथ रहकर पढ़ाई कर रहे है, पूरी साल सभी ने पढ़ाई की सबके नम्बर ठीक ठीक आ गए, बोले तो ६०% से ज्यादा।

अब इतना होते है दलितों और मुसलिमो के बच्चो को सरकार की तरफ बजीफा मिलने लगेगा, बजीफा मिलते ही ऊँची जाती के बच्चो के दिमाग में ये सवाल जरूर आएगा की नम्बर तो सबके एक जैसे ही थे फिर इनको सरकारी इनाम क्यों हमे क्यों नहीं।

हो सकता है कोई बच्चा कार्यालय में पूछ भी ले तो जबाब में उसे वही सुनने को मिलेगा जो सही है, मतलब की उनके साथ उठे बैठने और पढ़ने के बाद भी उनमे सरकार तो भेदभाव कर ही रही है, क्या सरकार ने उन दलितों और मुस्लिम बच्चो को दलित और अल्पसंख्यक नही माना, और अगर माना है तो फिर हमसे ये उम्मीद क्यों की हम न माने और मिलजुल कर रहे।


अब हर दलित या मुस्लिम बच्चा तो गरीब होता नहीं है, और जिस ऊँची जाती के बच्चे से उनकी दोस्ती हो हो सकता है वो उनसे ज्यादा गरीब हो, अब नम्बर आया नौकरी के लिए फॉर्म भरने का, [मान लिया पढ़ाई में हुए भेदभाव को ऊँची जाती के लोगो ने दोस्ती खत्म नही की और चलने दिया ], अब दलितों, पिछडो और अल्पसंख्यको को फॉर्म फीस में छूट, आए जाये का किराया और उम्र में छूट भी मिलेगी जो की उस विज्ञप्ति में लिखा होगा, पर इसके लिए जाती प्रमाण पत्र और अल्पसंख्यक वर्ग का प्रमाण पत्र चाहिए, तो उस समय ओ दोस्त उस फायदे के लिए बनवायेगे जरूर, अगर नहीं बनवाये तो बढ़िया है।

अब ये प्रमाणपत्र बनवा कर खुद ही जातिवाद की नीव डाल रहे है और सरकार को या किसी भी सक्छम अधिकारी को नही दीखता है की इन बच्चो का ऊँची जाती के लोगो में उठना बैठना है, कोई इनको दलित पिछड़ा  मुस्लिम होने के कारण भेदभाव नही करता है इसलिए इनको ऐसे किसी भी प्रमाणपत्र की जरूरत नही है जो की इनको समाज में में समाज से अलग होने का अहसास दिलाये।

चलो अब प्रमाणपत्र बन गया, अब नौकरी की तैयारी शुरू कर दी, पर सबकी एक जैसी पढ़ाई होने पर भी दलितों, पिछडो, और मुस्लिम भाई का सिलेक्शन हो जायेगा और ऊँची जाती के बच्चे का रह जायेगा, क्योंकि जब सब साथ है तो कोई भी पढ़ाई कम या ज्यादा नही कर सकता है।

अब या तो ऊँची जाती का बच्चा अपने दिमाग में ये लेकर चले की मुझे दलितों, पिछडो और मुसलमान दोस्त से ज्यादा पढ़ना है तभी मेरा चयन होगा, तो फिर समाज में भेदभाव की नींव तो पड़ ही गयी, और जब आपको साथ के किसी दोस्त का चयन किसी विशेष कारण से होता है तो आपको उस विशेष कारण का धारक होने के कारण अपने उस दोस्त के साथ साथ उस विशेष कारण से भी घृणा हो जाएगी।

मेरे साथ बाकियो से अलग व्यहार हुआ क्योंकि में चपरासी का बेटा था, मेरे साथ अलग व्यवहार हुआ क्योंकि में जिलाधिकारी का बेटा था, दोनों की स्थितियो में समाज के बाकि लोगो से हट कर उसको देखा गया, मतलब उस व्यक्ति विशेष से भेदभाव तो हुआ, एक में व्यक्ति खुद को पीड़ित मानता है दूसरे में बाकि समाज स्वयम को उस विषेशाधिकार के कारण स्वयम को पीड़ित मानते है।

आज ऊँची जातीय अपने जातीयता के अभिमान को भूल चुके है, पर निम्न जातीय जातीयता के नाम पर और मुसलमान धर्म के नाम पर इतने संगठित हो गए है की उनके एक इशारे पर सरकार बदल जाती है, आज जातीयता के नाम पर महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात उत्तर प्रदेश, हरियाणा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़  में सरकार बनती और बिगड़ती है तो मुस्लिम वोट के दम पर केरल आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यो सरकारे बनती और बिगड़ती है।


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