Official Blog of Ambrish Shrivastava: कौन है भारत भाग्य विधाता

Thursday, December 15, 2016

कौन है भारत भाग्य विधाता


भारत का नागरिक हूँ इसलिए भारत के संबिधान का अनुच्छेद १९ मुझे अभिव्यक्ति और बोलने की आज़ादी देता है, और भारत एवम राज्य सरकारों को निर्देश देता है की जब तक देश में आपातकाल न लगा हो मेरे इस अधिकार की रक्षा करे, ऊपर की भूमिका मेने इसलिए लिखी क्योंकि अब में भारत देश के राष्ट्र गान के बारे में कुछ लिखना चाहता हूँ और हो सकता है कुछ लोग इसे गलत कहे पर अपनी बात कहना मेरा अधिकार है और आपका भी.

देश में सबसे पहले मिलाजुला संघर्ष आज़ादी के लिए १८५७ से हुआ, फिर होते ही रहे, पर इन हालातो में भी रवीन्द्रनाथ ने १९११ में एक गीत लिखा जो की आज भारत देश का राष्ट्र गान  है, पर इसे बनाते समय तर्क दिया की भारत का नागरिक ही भाग्य विधाता है देश का, सिद्धान्त में ये सत्य प्रतीत होती है क्योंकि वो वोट देकर अपना प्रतिनिधि संसद और विधान सभा में भेजता है, पर क्या सिर्फ इतने से ही वो भाग्य विधाता हो गया.


उसका वोट तो उसको डरा कर, लालच देकर या फिर बहला फुसला कर ही लिया जाता है, कभी जाती के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर, कभी गरीबी के नाम पर, और वो अधिनायक कैसे हो गया, जबकि उसके पास अपने पप्रतिनिधि को दंड देने का कोई अधिकार नहीं है ५ साल से पहले, वो भी सिर्फ वोट न देने जैसा, पर वोट का प्रतिशत जैसा कोई मानक ही नहीं है, जैसे दिल्ली के २०१३ के विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मात्र २९.% वोट मिले और वो सत्ता में आ गयी, और २०१५ में बीजेपी को ३२% वोट मिले फिर भी उसे जीत नहीं मिली, मतलब सिर्फ ३ सीट मिली।

पंजाब सिंध जैसे जो प्रान्त हमारे राष्ट्र गान में आते है अब कहा है वो, क्या पुरे है हमारे पास, क्या बंगा है हमारे पास, नहीं है, जब सरकार से एक जन हित याचिका के बाद भारत की न्यायपालिका द्वारा  पूछ गया की ये स्थान जब हमारे पास नही है तो क्यों न इनको राष्ट्र गान से निकल दिया जाये, तो सरकार का जबाब था की सिंधीयो, पंजाबियो और बंगालियों का योगदान है इसलिए इनको नही निकाल सकते, तो फिर बिहार को भी जोड़ो, उत्तर प्रदेश को भी जोड़ो, केरल को भी जोड़ो क्या यहाँ के निवासियो का योगदान नहीं था।

मूल बात ये है की इसके राष्ट्र गान होने का कोई ठोस तर्क नहीं है, सिर्फ इसके की इसके रचियता रवीन्द्रनाथ थे और वो गाँधी और नेहरू के ज्यादा प्रिय थे, है अगर कोई आपकी नजर में तो बताये, स्वागत है, क्योंकि भारत के स्वतन्त्रता  संग्राम में ज्यातर स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी वंदे  मातरम का प्रयोग करते थे जो की बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था, पर उसे मजबूरी में भारत के राष्ट्र गीत का स्थान दिया गया, क्योंकि १९५० में राजेंद्र प्रसाद और बल्लभ भाई पटेल जैसे न्याय पसन्द लोग भी थे। 

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